पटेटो चिप्स तथा बेफर्स बनाने की विधि और संपूर्ण बिजनेस गाइड
तीस-चालिस लाख रुपए के निवेश तक इस उद्योग को आप किसी भी स्तर पर न केवल प्रारम्भ कर सकते हैं, बल्कि सफ्ततापूर्बक चला भी सकते हैँ ।
आधार रचक आलू तथा अण्डे
अंकल चिप्स, आदि नामों से बिकने वाले आलू के ये हल्के, खस्ता और करारे चिप्स वास्तव मे चिप्स नहीं, आलू के पापड है । आलुओं को छीलने और काटने के बाद उन्हें उबालते हैं और ठण्डे हो जाने पर पीसकर उन्हें पापड की तरह बेलने के बाद बिस्कुट काटने के सांचों से इनके ये वेफर्स काटे जाते हैँ । यही कारण है कि आलुओं के माप और उनके कटा-फटा होने सै आपकी कोई अन्तर नहीं पडता । बस इतना ध्यान रखा जाता है कि आलू स्वाद में मीठे, सडे-गले, अधिक चिपक प्रदायक या हरे रंग के न हों । इसके साथ ही इन वेफर्स में पर्याप्त मात्रा में अण्डे भी पडते हैं । इन वेफ़र्स का भार में अत्यन्त हल्का, करारा, फुसफुसा और सुनहरी पीले रंग के होने का एकमात्र कारण इनमें मिले हुए अण्डे ही होता है । घरों में निर्मितं आलू फे पापडों और इन वेफर्स में स्वाद, रंग, करारेपन और भार का जो भी अन्तर होता है उसका मूल आधार पर्याप्त मात्रा में अंडों का प्रयोग ही है। सैद्धांतिक रूप से तो इनमे ताजा अंडों का प्रयोग अधिक अच्छा रहता है, परन्तु इनकी उपलब्धता और अधिक कीमत एक बडी बाधा है । यही कारण है कि लगभग सभी निर्माता ताजा अण्डो के स्थान पर इनके सूखे पाउडर को पानी मे घोलकर प्रयोग करते हैँ । अण्डो का सूखा पाउडर तीन रूपो मे मिलता है…सम्पूर्ण अण्डे को सुखाकर तैयार किया गया पाउडर, सफेदी का " पाउडर और जर्दी का पाउडरा किसी भी पाउडर का प्रयोग करते समय उसे एक-डेढ़ घण्टे पहले साफ़-ताजे पानी में घोलकर रख दिया जाता है, जिससे पाउडर के तत्व पानी में अच्छी तरह फूलकर घुल-मिल जाएं । अण्डे की जर्दी को घोलने के लिए ढाई गुने पानी का प्रयोग किया जाता है, तो सम्पूर्ण अण्डे के पाउडर के लिए तीन गुने पानी का । सफेदी के पाउडर को आठ गुने पानी में घोला जाता है और इसे तीन घण्टे रखने के पश्चात प्रयोग किया जाता है । आप किसी भी रूप में अण्डो का प्रयोग करें, इनकी महक को दूर करने के लिए मिश्रण में पर्याप्त वनीला एसेन्स भी अनिवार्य रूप से मिलाया जाएगा । छोटे निर्माता तो वनीला एसेन्स बाजार से खरीदकर प्रयोग करते हैँ, परन्तु दक्ष निर्माता वनीला एसेन्स के मुख्य रसायन वैनीलोन तथा कुछ अन्य रसायनों को निर्गन्ध अस्कोहल मेँ घोलकर स्वयं ही यह एसेन्स बना लेते हैं ।
चिकनाई, मसालों के अर्क तथा सुगंधे
ये वेफर्स बिस्कुटों के समान भटूटी अथवा ओवन में सेंके जाते हैं, अत: चिकनाई के रूप में कोई रिफाइण्ड तेल भी इनमे मिलाया जाता है । वेसे भारतीय नमकीनों की अपेक्षा बहुतही कम चिकनाई और मसालों का प्रयोग इन वेफर्स में होता है । ताजा अण्डे की जर्दी में तो एक तिहाई के लगभग वसा तत्व होता है। अत: इन्हें मिलाने पर तो नाममात्र का ही तेल डाला जाता है । अण्डो की सफेदी के पाउडर का प्रयोग करने पर भी मिश्रण के कुत भार का पॉच प्रतिशत से अधिक तेल नहीं डालते । नमक, मिर्च तथा अन्य मसाले भी इनमें सूखे रूप में नहीं डाले जाते, क्योंकि ऐसा करने पर कोई भी मसाला सम्पूर्ण मिश्रण में समान रूप से नहीं मिल पाएगा, अतं: इनके स्वाद में भी एकरुपता नहीँ आ पाएगी । यही कारण है कि वेफ़र्स के मिश्रण में नमक तो पानी में घोलकर मिलाया जाता है और लाल मिर्च, अजवायन, जीरे तथा काली मिर्च जैसे मसालों को पानी में उबालकर छानने के बाद उस पानी को । जहॉ तक सोंठ, लोंग, इलायची और गर्म मसालों का प्रश्न है, इनके तेलों का प्रयोग किया जाता है'। परन्तु शुद्ध रुप में इन तेलों का प्रयोग बहुत अधिक महंगा पडता है अत: शुद्ध तेलों के स्थान पर प्राय: इनके कृत्रिम सुगन्ध मिश्रणों का प्रयोग किया जाता है । मसालों, वनीला तथा अन्य सभी सुगन्ध मिश्रणों के फार्मूले आप यहां जाकर पढ़ सकते हैं।
मशीने तथा निर्माण प्रक्रिया
पटेटो वेफर्स का कार्य चार चरणों में पूर्ण होता है । इनमे से प्रत्येक कार्य के लिए यों तो कई प्रकार की मशीने होती हैं । परन्तु ये सभी कार्य मशीनों पर, साधारण हाथ की जुगाडों
पर अथवा घरेलू रसोई के बर्तनों आदि में भी आसानी से किए जा सकते हैँ । मशीने लेते समय भी यह आवश्यक नहीँ कि सभी या कई मशीनें और उपकरण एक साथ लिए जाएँ । आप अपनी क्षमता और आवश्यकता के अनुसार भी उन्हें एक-एक करके खरीद सकते हैं । यही कारण है कि इस पोस्ट में मशीनों एवं उपकरणों की जानकारी निर्माण प्रक्रियाओं के साथ दी जा रही है ।
चिप्स तैयार करना
घरों में तो आलू उबालने के बाद छीलते हैँ, परन्तु इस तरह सभी आलू समान रूप से तो उबलते ही नहीं, छीलने में भी काफी असुविधा होती है । यही कारण है कि बडे पैमाने पर उत्पादन करते समय कच्चे आलुओं को साफ़ करने के बाद छीला जाता है और फिर उनके पाँच-छह मिलीमीटर मोटे चिप्स काटकर उन चिप्स को गर्म पानी में उबालते हैँ । चार-पाँच कुंटल तक आलू छींलने के लिए तो बेच पिलर नामक मशीन का प्रयोग किया जाता है, परन्तु बहुत बडे स्तर पर उत्पादन करते समय "काराबोरडम रोलर पिलर' नामक मशीन का प्रयोग उचित रहेगा । आलू छीलने की इन मशीनों में टैंक के अन्दर दूर-दूर कुछ रोलर्स लगे होते हैँ । मशीन के टैंक में आलू डालकर जब मशीन चालू कर दी जाती है तब ये रोलर तेजी से घूमते हैँ और इनके सम्पर्क में आने वाते आलू का छिलका उतर जाता है । इसके लिए आवश्यक है कि टैंक में क्षमता से कम आलू भरे जाए । इसके साथ ही टैंक को पानी से पूरा भरना और फिर पानी का निरन्तर प्रवाह बनाए रखना भी आवश्यक हे जिससे उत्तरे हुए छिलके तत्काल बहते रहें ।
छिले हुए आलू मशीन से निकालकर पानी भरे पात्र में डालना आवश्यक है क्योंकि हवा के सम्पर्क में रहकर ये काले पड़ जाते हैं । पास-पास, तीन बर्तन रखकर उनमें साफ़ व ताजा पानी भरा जाता है । इन तीनों पात्रो में भरे पानी में कोई हल्का और अहानिप्रद जीवाणुनाशक रसायन मिलाना भी आवश्यक है । सड़न रोकने वाले रसायन के रूप में प्राय: ही पोटाशियम मेटा बाई सल्फाइड अथवा सोडियम मेटा बाई सलफेट का प्रयोग करते हैँ । प्रति लीटर पानी का एक ग्राम सोडियम मेंटा बाई सलफेट अथवा तीन लीटर पानी में दो ग्राम पोटाशियम मेटा बाई सल्फाइड मिलाना पर्याप्त रहता है । यह घोल जहाँ आलुओं का रंग खराब नहीं होने देता, वहीं जीवाणुनाशक का काम भी करता है । परन्तु अधिक मात्रा में ये रसायन भूलकर भी न मिलाएँ, वर्ना जहरीले भी सिद्ध हो सकते हैँ । एक पात्र में छिले हुए आलू डाल दिए जाते हैँ और उसमें से एक एक आलू निकालकर उसके अंखुओं, कटे-फटे हिस्सों, कीडों द्वारा खाए हुए और हरे भागों को चाकू _से काटकर निकालने के बाद दूसरे पात्र में डालते जाते हें । सड़े-गले, पिलपिले और अधिक हरे आलु अलग निकाल दिए जाते हैं क्योंकि पूरी लॉट को चन्द सड़े हुए आलू ही खराब कर सकते हैं । चिप्स काटते समय ही आलू इस घोल से निकाले जाते हैँ और कटी हुई चिप्स को तत्काल ही तीसरे पात्र में डालते जाते हैँ । ये सभी कार्य सामान्य चाकू से हाथों द्वारा ही किए जाते हैँ, केवल चिप्स काटने के लिए कई फाल लगे चाकू या अन्य किसी जुगाड का प्रयोग किया जा सकता है । प्राय: ही ये चिप्स आधा अथवा पौन सेण्टीमीटर मोटी काटी जाती हैं जिससे सम्पूर्ण भाग समान रुप से पक जाए । सीजन में आलू सस्ते मिलते हैँ। अत: प्राय: चिप्स इकट्ठे बनाकर रख लिए जाते हैँ । इस प्रयोजन के लिए प्रति एक सौ लीटर पानी में साढे तीन ग्राम कार्बनडाई आक्साइड गेस घोलकर इस पानी को उबाल बिन्दु से भी कम अर्थात छियानवे अश सेण्टीग्रेड (96' 0) तापमान पर गर्म रखते हैं और तीन-चार मिनट तक इस पानी में चिप्स को पकाने के बाद पूरी तरह सुखाकर रख लेते हैँ । बाद में इन चिप्स को आवश्यकतानुसार उबालकर वेफर्स तैयार करते रहते हैं । जब चिप्स के उसी दिन वेफर्स बनाने होते हैँ, तब साधारण पानी में पूरी तरह मुलायम होने तक पकाने के बाद अधूरे रूप में सुखाकर मिश्रण तैयार करते हैँ ।
मिश्रण तैयार करना
सभी मसालों के अर्क और एसेन्स तो पहले तैयार करके रख ही लिए जाते हैँ, अण्डो की सफेदी के पाउडर को भी आठ गुने पानी में घोलकर इतना पहले रख देते हैँ कि मिलाते समय तीन घण्टे तो हो ही जाएं । चिप्स इतने उबाले जाते हैँ कि आसानी से मसलकर उनकी लुगदी बनाई जा सके । इन चिप्स को निचोढ़कर अधूरे रूप में सुखाने और ठण्डा करने के बाद एज रनर अथवा ट्रिपिल रोलर मिल नामक हेवी डूयूटी मिक्सर में डालकर अच्छी तरह घुटने तक पीसा जाता है। चिप्स के पूरी तरह पिसने के पूर्व ही इनमे वनीला मिश्रित अण्डो का घोल, पानी में मिला नमक और मसालों के क्वाथ एवं अर्क भी डाल देते हैँ और कुछ समय पश्चात सभी एसेन्स और सुगंध मिश्रण भी । मिश्रण तैयार करते समय दो बातों का विशेष ध्यान रखा जाता है-मिश्रण अधिक पतला न हो जाए और सभी रचक परस्पर मिलकर एकजान हो जाएं ।
बेलना काटना तथा पकाना
तैयार मिश्रण कों पापड की तरंह पतला बेलने के बाद गोल, अण्डाकार अथवा मिली जुली आकृतियों में काटा जाता है । बहुत छोटे स्तर पर तो आप किसी पटरे पर बेलन की सहायता से इन्हें पापड़ की तरह पतला बेलकर गोल सांची की सहायता से काट सकते हैं। वैसे छोटे स्तर पर भी इन्हें बेलने के लिए हस्त चलित बिस्कुट बनाने की मशीन का प्रयोग अधिक सुविधाजनक रहेगा। शायद यह कहने की तो आवश्यक्ता ही नहीँ कि इन्हें बेलते समय लोई के ऊपर नीचे पोलोथीन की पर्याप्त बडी, परन्तु पतली शीट रख लेने से अधिक सुबिधा रहेगी । जहाँ तक बड़े स्तर का प्रश्न हे बिस्कूट बनाने की आटोमेटिक मशीन पर भी इन्हे आसानी से तैयार किया जा सकता है ।
वेफर्स उबले हुए आलुओं के बनते हैँ और काफी पतले होते हैँ। अत: बहुत कम ताप पर शीघ्र ही सिंक जाते हैँ । बड़े स्तर पर तो इन्हें बिस्कूट सेकने के ओवन में ही सेका जाता है, परन्तु मात्र छह-सात मीटर लम्बा यह ओवन होता है और इसमें कूलिंग चेम्बर भी नहीं होता । इस ओवन मे कम क्षमता के और कम संख्या में हीटर तो लगते ही हैँ, कन्वेयर बेल्ट की जाली भी काफी घनी होती है जिससे इन पर तारों के निशान न पड़े । एक-डेढ़ ताख रुंपए में यह ओवन आसानी से तैयार हो जाता है । जहॉ तक छोटे स्तर पर उत्पादन का प्रश्न है आप इन्हें टिन की चादरों पर रखकर बेकरी की साधारण भटूटी में या नानखटाइयों की तरह भी सेक सकते हैं । इसी प्रकार पाउच पैर्किग के स्थान पर बड़े माप की पोलोथीन की सामान्य सफेद थैलियों मेँ पैक करके रेस्टोरेंट, क्लबों, कैण्टीनों और कैटरिंग ठेकेदारों को नियमित सप्लाई भी आप कर सकते हैं, अथवा छोटे पैकिंग में दुकानों पर बेचने के लिए रख सकते हैँ।
0 Comments: