सूखी, संरक्षित तथा डिब्बाबंद सब्जियां
आज़ बाजार में सफ़ल मटर की बहार है तो मेथी की सूखी पत्तियां कसूरी मेथी के नाम पर पिसे हुए मसालों की दर पर ही बिक रही है । सूखे मशरूम भी ताजा मशरूमों से लगभग दस गुना दर पर बिकते हैं और यही स्थिति लगभग अन्य सभी सब्जियों की है । सबसे बड़ी बात तो यह है कि फलों की डिब्बाबन्दी के विपरीत बहुत कम पूँजी निवेश से ही यह उद्योग बड़े पैमाने पर भरपूर लाभ के साथ चलाया जा सकता है । इस उद्योग की मुख्य विशेषता तो यह है कि इसमें महत्व बाजार की निकटता का नहीँ, बल्कि भरपूर मात्रा में ताजा सब्जियों की सहज आपूर्ति का है । यही कारण है कि छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रो में यह उद्योग अत्यधिक लाभ के साथ चलाया जा सकता है, जहाँ जमीन और वर्कर दोनों ही काफी सस्ती दर पर उपलब्ध हैं । सबसे बडी बात तो यह है कि इस उद्योग में किसी जटिल या बडी मशीन का प्रयोग तो होता ही नहीं, पैकिंग का कार्य भी सामान्य जुगाडों पर हो जाता है । यही नहीं, अधिकांश सब्जियों को तो सामान्य रूप से सुखाकर भी सुरक्षित रखा जा सकता है, जिसमेँ आपका कोई अतिरिक्त खर्च लगभग पड़ता ही नहीं ।
सुखाकर सुरक्षित करना
खाद्य पदार्थ ही नहीँ, सभी वस्तुओं में सड़न उत्पन्न करने का कार्य कुछ अदृश्य जीवाणु करते हैं । बगैर नमी अर्थात पानी और वायु के कोई भी जीवाणु जीवित रह ही नहीं सकता । सभी मसाले सूखे हुए बीज या फ़ल हैं, परन्तु पूर्णत: नमी रहित होने के कारण ही वे सामान्य वातावरण में भी नही सड़ते । यही कारण है कि मेथी, पुदीना, बथुआ, पालक ही नहीं सभी पत्तेदार सब्जियां उनकी मुलायम डंडियों सहित पूरी तरह सुखाकर एअर टाइट ड्रमों में आसानी से रखी जा सकती है । मटर आदि फलियों के दाने निकालकर सुखाए जाते हैं, तो मूली, गाजर और परवल जैसी सब्जियां काटकर सुखाई जाती हैं । मशरूम प्राय: साबुत ही सुखाए जाते हैं । किसी भी सब्जी को सुखाने के पूर्व उनकी सफाई और कटाई-छटाई करने के बाद दो-तीन दिन तक उबाला भी जाता है । परन्तु इन्हें पकाया नहीं जाता, मात्र दो-तीन मिनट तक उबालते ही हैं । आग पर पानी रखने के बाद प्रति लीटर जल दो ग्राम खाने का सोडा अर्थात सोडा बाई कार्ब डाल देने पर सूखने के बाद भी सब्जियों का मूल रंग बना ही रहता है । छोटे स्तर पर तो आप इन्हें धूप में भी सुखा सकते हैं, परन्तु नित्य सुखाने और शाम को उठाने का श्रम तो करना ही पडेगा, दिन भी अधिक लगेंगे। यही कारण है कि बड़े स्तर पर तो काँच की छत और दीवारों वाले विशिष्ट गोलाकार कमरों का प्रयोग इन्हें सुखाने के लिए किया जाता है । वेसे सामान्य कमरे में कुछ गर्म हवा प्रवाहित करने वाले ब्लोअर और छत के पंखे लगाकर भी इन्हें आसानी से सुखाया जा सकता है ।
नमक के घोल में परिरक्षण
जो सब्जियां पूर्णतय: सुखाए जाने के बाद भी अपना स्वाद नहीं खोती, उन्हें तो उपरोक्त विधि से ही संरक्षित किया जाता है । परन्तु कुछ सब्जियों सुखाने पर बेस्वाद हो जाती हैं । इस प्रकार की सब्जियों को साबुत अथवा काटकर कई प्रकार के घोलों में सुरक्षित रखा जाता है । प्रति लीटर जल दो सौ ग्राम सामान्य नमक घोलने के बाद यदि सब्जियों को उस घोल मे डुबाए रखा जाए तो वे वर्षो तक ताजा जैसी बनी रहती हैं । परन्तु भरपूर मात्रा मे नमक मिला होने के कारण टिन के डिब्बों में इन्हें पैक नहीं किया जा सकता । यही कारण है कि बाजार में बिक्री के लिए तो कम, परन्तु सेना, होटलों और कैन्टीनों आदि में सप्लाई करने के लिए प्राय: ही सब्जियों को नमक मिश्रित पानी में संरक्षित किया जाता है ।
एसिड मिश्रित चाशनी में सुरक्षित करना
फल तो चीनी के पर्याप्त गाढ़े शर्बत में संरक्षित किए जाते हैं, परन्तु सब्जियों के लिए ये चाशनी तैयार करते समय पानी के भार का मात्र पांच प्रतिशत चीनी और आधा प्रतिशत साइट्रिक एसिड पर्याप्त रहता है । इस प्रकार एक सौ लीटर पानी के साथ मात्र पाँच किलोग्राम चीनी और आधा किलोग्राम साइट्रिक एसिड लगता है । इतने ही पानी मे बीस किलोग्राम नमक डालना पडता है। अत: उपरोक्त विधि से कुछ ही महँगी पड़ती है यह विधि और यही कारण है कि हमारे देश में सर्वाधिक लोकप्रिय है । कटी हुई और साबुत सभी प्रकार की सब्जियां इस विधि से संरक्षित रखी जा सकती हैं और डिब्बाबंद फलों के समान ही इन्हें टिन के डिब्बों में पैक किया जा सकता है ।
नमक तो ठण्डे पानी में ही घोल लिया जाता है, परन्तु इस बिधि मेँ चीनी की चाशनी तो बनानी ही पडती है, उसे तैयार करने की भी एक बिशेष बिधि है । जितनी चाशनी बनानी होती है उतना पानी किसी स्टेनलेस स्टील अथवा तामचीनी के भगोने में भरकर प्रतिलीटर पानी पांच ग्राम के हिसाब से साइट्रिक एसिड डालकर रख देते हैं । एसिड घुल जाने पर मन्द आग पर इसे पाँच सात मिनट हिलाने के बाद स्थिर रखा रहने देते हैं । ठण्डा हो जाने पर एसिड का अधुलनशील अंश तथा अन्य अशुद्धियाँ नीचे बैठ जाती हैँ । ऊपर से निथरा हुआ पानी दूसरी कड़ाही में डालकर इस निथरे हुए पानी में प्रतिलीटर पचास ग्राम के हिसाब से चीनी डालकर अच्छी तरह पकाते हैँ । टिन के डिब्बी में साबुत अथवा कटी हुई सब्जी डालने के बाद यह उबलती हुई चाशनी भर दी जाती है और फिर तत्काल ही उन्हें पैक कर लिया जाता है ।
एसीटिक एसिड मैं सरंक्षण
योरोप और अमरीका में जहाँ मूल्य को नहीं, क्वालिटी को महत्व दिया जाता है, सबसे अधिक प्रचलित है यह बिधि, परन्तु हमारे यहाँ बहुत कम । साबुत फ़ल और सब्जियां दोनों ही इस बिधि से संरक्षित रखे जा सकते हैँ और उनका रंग, रुप औेर स्वाद भी एकदम ताजा बना रहता है । परन्तु काफी अधिक महँगा होना, प्रयोग से पहले फल या सब्जी को साफ़ पानी मे अच्छी प्रकार धोना और डिब्बे के एसिड को व्यर्थ फेंकना इस विधि की तीन बडी कमियां हैँ । टिन के डिब्बों में फ़ल अथवा सब्जी रखने के बाद उनमे एसिटिक एसिड भर दिया जाता है और फिर इन्हें उबलने तक गर्म करके तत्काल ही सीलबन्द कर दिया जाता है ।
पैक करने की प्रक्रिया
डिब्बाबन्द फ़ल अथवा सब्जियाँ हों, अथवा रसगुल्ले जैसी मिठाइयां, इनके साथ भरा हुआ तरत जहाँ इन्हें सुरक्षित रखता है, वहीं इन्हें साले ने सड़ने और खराब होने से बचाने में उससे भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है पैकिंग की विशिष्ट तकनीक की । यह एक लम्बी प्रक्रिया है और फलों तथा रसगुल्ले जैसी मिठाइयों की पैकिंग में भी इसका प्रयोग होता है । अतः इसका विस्तृत जानकारी हम अगले पोस्ट में दे रहे हैँ । जहां तक पूरी तरह सुखाकर संरक्षित की गई सब्जियों का प्रश्न है, उन्हे तो जीवाणुविहीन की गई मोटी पोलीथीन की थैलियों में भरकर उनके मुँह को सामान्य सीलर से बन्द कर दिया जाता है । बडे उत्पादक इस कार्य के लिए तीन अथवा दो सतह के फैंसी पाउचों का प्रयोग भी करते हैँ, तो मध्यम स्तरीय उत्पादक पोलीथीन की थैलियों को पिसे हुए मसालों के समान छपे हुए गत्ते के डिब्बों में रख देते हैं । जहाँ तक नमक के पानी में संरक्षित सब्जियों का प्रश्न है, उन्हे तो प्राय उन्हीं ड्रमों में सप्लाई कर दिया जाता है जिनमे भरकर इन्हें रखा जाता है ।
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