शैंपू तथा हेयर वास (SHAMPOOS) बनाने की विधि एवं संपूर्ण जानकारी।
महिलाओं के साथ ही पुरुषों और बालको तक में सिर के बाल धोने के लिए शैमपुओ का प्रचलन इतना अधिक बढ़ चूका है कि केश धोने के विशिष्ट साबुनों को इन्होंने बाजार से लगभग बाहर ही कर दिया है । जो परिवार सामान्य सुगन्धित स्नान के साबुनों तक का प्रयोग नहीं करते, वे भी बात धोने के लिए पाउच पैकिंग में शैम्पू खरीद ही लेते हैँ । साबुन सम्राट हिन्दुस्तान यूनीलीवर का जहां आज शैम्पू सबसे प्रमुख उत्पाद बन चुके हैँ, वहीँ कई संस्थान राष्टीय स्तर पर इनका उत्पादन और वितरण कर रहे हैँ । यही नही, जिन व्यक्तियों ने चन्द वर्ष पूर्व पाँच-सात हजार रुपए के कुल निवेश से यह व्यवसाय प्रारम्भ किया था, वे आज करोडों रुपए प्रतिवर्ष का व्यवसाय कर रहे हैं । आज शीशियों से भी अधिक मात्रा मे ये पाउर्चों मे बिकते हैं । यही कारण है कि पाउच पेकिंग मशीन की खरीद और पाउचों के निर्माण पर प्रारम्भ मे पाँच छह ताख रुपए और इतना ही धन कार्यकारी पूंजी के रूप में लगाकर चार-पांच लाख रुपए प्रतिमाह का व्यवसाय करना सहज संभव है । इस रुप में आप अपने कुल पूँजी निवेश जितना धन एक वर्ष में आसानी से अर्जित कर लेगे और प्रतिवर्ष दोगुने तक स्वयं ही बढता जाएगा आपका उत्पादन एवं व्यवसाय ।
प्लाण्ट, पैकिंग तथा कच्चा माल
शैम्पू निर्माण और पैकिंग कें लिए न तो अधिक स्थान चाहिए और न ही कोई विशिष्ट मशीना तरल डिटर्जेण्टों के समान ही एकाध सामान्य मिक्सर और सामान्य बोतल फिलिंग मशीन 'लेकर इनका उत्पादन सुगमतापूर्वक किया जा सकता है, परन्तु एक से दो रुपए के मध्य बिकी मूल्य वाले पाउचों मे इन्हें पैक करने के लिए स्वचलित पाउच पैकिंग मशीन चाहिए क्योंकि पाउच कम संख्या में नहीं तेयार कराए जा सकते अत: प्रारम्भ में इन्हें तेयार कराने पर ही कुछ अधिक लागत आती है। इन्हें प्लास्टिक की शीशियों में पैक किया जाता है, स्कीन प्रिष्टिग प्रोसेस से ये शीशियां छापी जाती हैं, अत: ये तो सौ-दो सौ जैसी कम मात्रा में भी ली जां सकती हैं । इन शीशियों पर न हो कोई लेबिल लगता है और न ही इन्हें छपे हुए गत्ते के डिब्बों में रखा जाता है, अत: इस मद पर भी आपको कुछ भी खर्च नही करना पडता ।
जहाँ तक कच्चेमाल का प्रश्न है, अधिकांश शैम्पू रसायनों द्वारा निर्मित होते हैं । इस प्रकार कै शैम्पू वास्तव में मध्यम क्षमता के लिक्विड डिटर्जेण्ट ही हैं, और लगभग उन्हीं रसायनों का प्रयोग किया जाता है । पीले रंग के एग शैंपू में अण्डो की जर्दी का पाउडर पानी में घोलकर मिलाया जाता है तो रूसी विनाशक शैंपू में पर्याप्त मात्रा में कोई जीवाणुनाशक रसायन । साबुन आधारित शैम्पूओं का मुख्य आधार घटक नारियल और अरण्डी का रिफाइण्ड तेल तथा कास्टिक सोडा होता है, तो फोम बूस्टर अनिवार्य सहायक रचक । वेसे आज का केज़ है वे हर्बल शैम्पू जिनके निर्माण मे रीठे के बारीक पाउडर, हरड़, बहेडा, आँवला, नीम के तेल और शिकाकाई जैसे वृक्षोत्पादों का प्रयोग प्रमुख रूप से होता है । वैसे यह आवश्यक नहीं कि आप सभी प्रकार के शैम्पू तैयार करे, किसी एक प्रकार का शैम्पू निर्माण करके भी यह उद्योग सफ़लतापूर्वक चलाया जा सकता हैं ।
असली हर्बल शैम्पू
इन शैम्पूओं में रीठे का प्रयोग मुख्य आधार रचक और मै ल काटने वाले प्रमुख क्रियाशील रसायन के रूप में होता है । आँवला और शिकाकाई का प्रयोग केशों को काला करने और काला बनाए रखने के लिए किया जाता है । तुलसी, नीम की पत्तियों और बोरिक पाउडर अथवा सुहागा जीवाणुनाशन के लिए मिलाए जाते हैं तो सन्तरे और नींबू के सूखे छिलकों का प्रयोग सुगन्ध तथा सफाई एवं ताजगी क्षमता बढाने के लिए किया जाता है । पानी के बीस प्रतिशत के बराबर तक ग्लिसरीन भी इन शैम्पूओं में अनिवार्य रूप से मिलाई जाती है । वनस्पतियों का स्वयं अर्क निकालने के लिए इनके दरदरे चूर्ण या छोटे-छोटे टुकड़े करके अलग-अलग पानी मेँ डालकर
रख देते हैं । अच्छी तरह चलाकर प्रत्येक पात्र में ऊपर एक छलनी रखकर इतना भार रख देते हैं कि सम्पूर्ण दुकड़े पानी मे दूबे रहे । बीच-बीच में इसे हिलाते-चलाते रहते हैं और अन्त में
कपड़े में अच्छी तरह से निचोड़कर फोक को फेक देते हैं और विविध अनुपातों में ये छने हुए सत्व मिलाकर कई प्रकार के हर्बल शैम्पू तेयार कर लिए जाते हैं । वेसे खादी ग्रामोद्योग कमीशन, सहकारी संस्थानों और बहुत ही छोडे उत्पादकों द्वारा ही यह बिधि प्रयोग की जाती है । मध्यम स्तर पर उत्पादन करते समय भी स्वयम रीठे का सत्व निकालने के स्थान पर पाउडर रूप में सोपोनिन नाम से आने वाले रीठे'के सत्व का प्रयोग ही प्राय: किया जाता है ।
रीठों का सत्व अर्थात सैपोनिन 200 ग्राम
ग्लिसरीन एक किलोग्राम
पानी तथा गुलाबजल तीन लीटर
बोरिक एसिड 100 ग्राम
रंग व सुगन्ध आवश्यकतानुसार
सामान्य हर्बल शैम्पू
स्वयं वनस्पतियों कै सत्व एवं अर्क तैयार करने और बडी मात्रा में ग्लिसरीन के प्रयोग के कारण शुद्ध हर्बल शैम्पू पर्याप्त महँगे पडते हैं । यहीँ कारण है कि अनेक छोटे निर्माता इस शैम्पू में कुछ वृक्षोत्पाद मिलाकर भी हर्बल शैम्पू के नाम पर बेच रहे हैँ । अच्छी क्वालिटी के तैलो में कास्टिक पोटाश की अधिक पतली लाईं और गुण वर्धक रचकों के रूप में अल्कोहल, रीठों का सत्व और ग्लिसरीन मिलाकर यह शैम्पू तैयार किया जाता है । इन रचकों के अनुपात पर ही निर्भर करती है इस शैम्पू की क्वालिटीनारियल का तेल चार किलोग्राम
रिफाइण्ड तिल या अरण्डी का तेल एक किलोग्राम
कास्टिक पोटाश की लाई 44 वामी की ढाई लीटर
ग्लिसरीन 600 ग्राम
आइसो प्रोपाइल अल्कोहल डेढ लीटर
डिस्टिल्ड वाटर बारह लीटर
सैपौनिनं पाउडर 25 ग्राम
जडी-ब्रूटियों के सत्व व अर्क इच्छानुसार
रंग, सुगन्ध व जीवाणुनाशक रसायन आवश्यकतानुसार
सवा किलोग्राम कास्टिक पोटाश अथवा 1050 ग्राम कास्टिक सोडे को डेढ़ लीटर पानी में घोलकर यह लाईं तैयार की जाती है । कास्टिक सोडे का प्रयोग करने पर पानी तो दो लीटर प्रयोग करते ही हैँ शैम्पू भी अधिक अच्छा नहीं बनता । एकदम ठण्डी लाई, दोनों तेलों और अल्कोहल को कढाही अथवा वाटर बाथ में डालकर अस्सी डिग्री सेण्टीग्रेड तापमान पर निरन्तर चलाते हुए साबुनीकरण की किया पूर्ण होने तक पकाते रहते हैं । सावुनीकृत हो चुके इस घोल को पानी में घोलकर और अन्य सभी रचक डालकर निरन्तर चलाते हुए पन्द्रह-बीस मिनट और पकाकर कडाही मेँ ही ठण्डा होने देते हैँ । सभी मिश्रर्णो मेँ सुगन्ध पूर्णतया ठंडा हो जाने के बाद मिलाई जाती है और यह फार्मूला भी कोई अपवाद नहीं ।
अर्द्धरासायनिक शैम्पू
नारियल कै तेल के स्थान पर इसके फेटी एसिड और ओलीक एसिड, क्षार के रूप में इथेनोलोमाइन और ग्लिसरीन के स्थान पर ग्लाइकोल का प्रयोग भी इनके निर्माण में होता है । ये तीक्ष्ण रसायन नहीं, बल्कि तेलों और क्षारों का संशोधित रूप हैं अत: इनकी गणना साबुन पर आधारित शैंपू के वर्ग में ही होती है ।कोकोनट आंयल फेटी एसिड नौ किलोग्राम
ओलिक एसिड दस किलोग्राम
ट्राई इथेनोलामाइन दस लीटर
प्रोपिलीन ग्लाइकोल लीटर
रंग व सुगंध आवश्यकतानुसार
दोनों एसिडों को पिघलाने के बाद में ट्राई इथेनोलामाइन तथा प्रोपलीन ग्लायकोल मिलाकर सावुनीकरण होने तक निरन्तर चलाते हुए मन्द आग पर 'पकाते हैं । इस गर्म घोल को हाई
स्पीड मिक्सर में डालकर पूर्ण पारदर्शी होने तक चलाया जाता है और अन्त में आवश्यकतानुसार डिस्टिल वाटर, रंग, सुगन्थ व अन्य गुणवर्द्धक रचक डालकर एक जान होने तक चलाते रहते हैं ।
अधिक तरल शैम्पू
पर्याप्त सीएमसी. मिलाए जाने के बावजूद काफी पतला रहता है यह शैम्पू। चिलेटिंग़ एजेण्ट मिला देने पर रसायनों से निर्मित्त यह शैम्पू कठोर पानी में भी बहुत अच्छा कार्य करता है । डीहाइड्रोक्सी ग्लिसरीन, टारटेरिक एसिड, साइट्रिक एसिड जैसे लगभग एक दर्जन रसायनों का प्रयोग आप चिलेटिंग एजेण्ट के रूप में कर सकते हैं । फोम बूस्टर, चिलेटिंग ऐजेण्ट, सी. एम. सी. और जीवाणुनाशक तथा गुणवर्द्धक रसायन आप किसी भी अनुपात में प्रयोग कर सकते हें, क्योंकि ये सफाई के साधन नहीं, शैम्पू को विशिष्टता प्रदान करने वाले रसायन है।100% शुद्ध सोडियम ईथर सल्फेट । पन्द्रह किलोग्राम
सोडियम क्लोराइड अर्थात सामान्य नमक ढाई किलोग्राम
चिलेर्टिंग एजेण्ट 300 ग्राम
कारबॉक्सि मिथाइल सेल्यूलोज़ 200 ग्राम
रंग व सुगन्ध आवश्यकतानुसार
ताजा पानी सौ लीटर
मध्यम स्तरीय गाढा शैम्पू
पाउचों में सबसे अधिक गाढे शैम्पू ही बिकते हैँ, जबकि आधुनिक उच्चवर्ग शीशियों में पतले शैम्पू खरीदना अधिक पसन्द करता है । उपरोक्त के समान ही यह शैम्पू भी बिना गर्म किये मिक्सर में घोंटकर तैयार किया जाता है । सी.एम.सी. एक दिन पहले और अन्य सूखे रचक कुछ घण्टे पूर्व अलग-अलग पानी में घोलकर रख देते हैं और फूल जाने पर छानकरं मिला देते हैं। फार्मूला इस प्रकार है-40% सांद्रता का ट्राई इथेनालामाइन फैटी अल्कोहल
35 किलोग्राम
कोकोनट डाईथेनोलामाइड तीन किलोग्राम
चिलेर्टिंग एजेन्ट 25० ग्राम
कोरबॉक्सी मिथाइल सेल्यूलोज 100 ग्राम
रंग व सुगन्ध आवश्यकतानुसार
ताजा पानी 62 लीटर
कमजोर केशों हेतु एग शैम्पू
गहरे पीले रंग में तैयार किए जाते हैँ कमजोर और सूखे बालों के लिए अंडों की जर्दी मिश्रित ये एग शैम्पू। शैम्पू के भार का चार से छह प्रतिशत ताजा अंडो का पीला भाग अर्थात जर्दी किसी भी शैम्पू में मिलाकर आप उसे एग शैम्पू का रूप दे सकते हैं। व्यावहारिक -रूप में अंडों की जर्दी के पाउडर को उसके भार के डेढ गुने पानी में घोलकर रख देते हैं । डेढ़-दो घंटे मे यह घोल फूल जाता है, तब उसे शैम्पू में मिलाया जाता है । अंडों की गन्ध दबाने के लिए प्राय: ही पर्याप्त वनीला की सुगन्ध अथवा वैनीलीन, सड़न रोकने के लिए पर्याप्त मात्रा में बोरिक पाउडर अथवा कार्बोलिक एसिड भी अनिवार्य रूप से मिलाया जाता है और साथ ही गहरा पीला रंग भी। यद्यपि किसी भी शैम्पू मे अंडा की जर्दी का घोल मिलाया जा सकता है, परन्तु जहाँ तक गुणवत्ता का प्रश्न है प्रथम तीन फार्मूलों से निर्मित शैद्युओं से ही यह शैम्पू तैयार करना उचित है, क्योंकि जडी-बूटियों अथवा तेलों पर आधारित होने के कारण अपने मूल रूप में भी ये बालो के लिए पर्याप्त पोषक ओर हितकारी रहते हैँ ।लेमन एण्ड लाइम शैम्पू
घने और चिकने वालो की गहरी सफाई करनेवाले ये शैम्पू वास्तव में रसायनों से निर्मित्त सामान्य शैम्पू ही हैं। किसी भी शैम्पू में भार का पांच प्रतिशत नीबू का रस और दस प्रतिशत बुझे हुए चूने का पानी मिलाकर ये शैम्पू तैयार किए जा सकते हैँ । हर्बल शैंपू में तो ये दोनो वस्तुएँ मिलाई जाती हैं, परन्तु रसायनों से निर्मित शैंपू में चिलेटिंग एजेण्ट के रूप मे मिलाए जाने वाले रसायन की मात्रा बढाकर ही यह कार्य कर लिया जाता है । प्रति किलो ग्राम शैम्पू ढाई ग्राम सीट्रिक एसिड अथवा तीन ग्राम टारटेरिक एसिड और सौ-सवा सौ मिली लीटर चूने का निथरा हुआ पानी मिलाना पर्याप्त रहता है । इन दोनों वस्तुओं को निर्माण-प्रक्रिया के मध्य ही मिलाया जाता है और जितना चूने का पानी मिलाते हैं, सामान्य पानी की मात्रा उतनी ही कम कर ली जाती है ।
हाई क्लास हेयर वाश
शैम्पू लगाने के बाद तो पर्याप्त पानी से सिर धोना पडता है, परन्तु हेयर वाश लगाने के बाद पानी का प्रयोग अनिवार्य नहीं। सिर की त्वचा और बालों में अच्छी प्रकार हेयर वाश लगाने के बाद गीले तौलिए से पोंछने अथवा बहुत ही कम पानी से धोने पर ही बाल पूरी तरह साफ हो जाते हैँ । योरोप में अत्यन्त लोकप्रिय सर्वश्रेष्ठ क्वालिटी के हेयर बॉश का फार्मूला इस प्रकार है-
एजूनॉलं एक किलोग्राम
लिनालोनं 600 ग्राम
कुनाइन सल्फेट 250 ग्राम
फेनिलीथाइल अल्कोहल 400 मि० ली०
गेरामियोल 300 मि० ली०
सिंनोमिक अल्कोहल 125 मिली
बालसम आफ़ पेरू 30 मिली
अल्कोहल 25 लीटर
ग्लिसरीन छ: किलोग्राम
गुलाब जल या डिस्टिल्ड वॉटर 4 लीटर
ग्लिसरीन छ: किलोग्राम
गुलाब जल या डिस्टिल्ड वॉटर 4 लीटर
कूनाइन सलफेट को ग्लिसरीन में घोलकर रख दीजिए । अन्य सूखे रचफों को पीसकर अल्कोहल में मिला दीजिए । सुगन्थ मिश्रर्णो और शेष सभी रचफों को भी अल्कोहल में मिलाकर उसमें ग्लिसरीन व कुनाइन का घोल भी डालकर अच्छी तरह चलाने के बाद आठ-दस घण्टे पड़ा रहने दीजिए। प्रतिदिन अच्छी तरह से हिलाते-चलाते रहते हैं, और समी रचको के एकजान हो जाने पर छानकर बड़े माप की बोतलों में पैक कर देते हैँ ।
हेयर वाश को इतनी मात्रा में बालों और सिर की त्वचा पर चुपड़ा जाता है कि वे पूर्णत: गीले हो जाएँ । इसके बाद बाल को धोना अनिवार्य नहीं, केवल तोलिए से पोंछने से ही काम चल जाता है । यही कारण हे कि जहाजी और सैनिक तो इनका प्रयोग करते ही हैं, यात्रियों के लिए भी यह परम उपयोगी रहता है । यही नहीं, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश के पहाडी भागों में अल्प प्रयास से ही इन्हें अत्यन्त लोकप्रिय बनाना भी सहज सम्भव है । जिस प्रकार सामान्य के स्थान पर हर्बल शैम्पू और एग शैम्पू आज का क्रेज बन चुके हैं, ठीक उसी प्रकार हेयर वाशेज़ की भी भरपूर माँग अल्प प्रयासों से उत्पन्न की जा सकती है, क्योंकि सर्दियों के मौसम में सम्पूर्ण उत्तरी भारत में और यात्रा करते समय सभी स्थानों पर अधिकांश व्यक्ति इनका प्रयोग पसन्द करते हैं । सबसे बडी बात तो यह है कि इन्हें तैयार और पैक करने के लिए किसी मशीन अथवा उपकरण का प्रयोग भी अनिवार्य नहीं, प्लास्टिक की शीशियों में इन्हें पैक करके प्लास्टिक का ही घूड्रीदार ढवकन लगाना पर्याप्त रहता है ।
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